Kavita Jha

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पिशाचों और नरपिशाचों की दुनिया# डरना जरूरी है#लेखनी वार्षिक कहानी लेखन प्रतियोगिता कहानी -29-Mar-202


पिशाचों और नरपिशाचों की दुनिया (# डरना जरूरी है)

"आज तो हद हो गई", बड़बड़ाते हुए संध्या अपने कमरे में आती है। इस तरह कब तक सबकी गुलामी करूंगी, आज तो फैसला कर ही लिया है। अब चली जाऊँगी दूर ये घर छोड़ कर, ना तो अपनी बच्चियों की देखभाल ठीक से कर पा रही हूँ और ना ही संदीप जी ही मुझे समझते हैं।

लगभग रोज का यही हाल था, और रोज संध्या यही सोचती कि वो अपने बच्चों और  पति सबको छोड
कर कहीं दूर चली जाऐगी। पर ऐसा होता नहीं था अपनी दोनों बच्चियों का मोह बाँधे रखता था उसे इस घर अपने ससुराल से। रोज सास के ताने सुनकर थक गई थी, अब बेटा और  बेटी एक समान है कैसे समझाऐ अपनी पुरानी विचारधारा की सास को, जो बस पोते की आस लगाऐ बैठी है।

संध्या का रोते रोते बुरा हाल हो गया था, अपनी बच्चियों को लेकर कहाँ जाऐगी। मायके से भी कोई आसरा नहीं है, कैसे पालेगी बच्चियों को। छोटी बेटी तो सिर्फ साल भर की है और बड़ी तीन साल की, पाँच साल पहले ही संदीप से शादी हुई थी।

आखिर आज भी हिम्मत ना बना पाई घर छोड़ने की,  सिर पर छत तो है अगर यहाँ से चली जाऐगी तो कहाँ जाऐगी?? ये दुनिया है तो बहुत बड़ी पर नरपिशाचों की कमी नहीं है यहाँ। छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते ये नरपिशाच।

आँख से बहते आँसूओं से तकिया भीग गया था, बच्चियों को सुलाने के बाद रोते रोते ही वो सो गई।

संध्या अपनी दोनों बच्चियों के साथ बस में बैठी है,  अचानक से बस रुक जाती है। संध्या पीछे मुड़कर देखती है, पूरी बस खाली है। वो डरकर अपनी बच्चियों को ले बेतहासा दौड़ रही है। कुछ लोग उसका पीछा कर रहे हैं, छोटी बेटी को उसने अपने दुप्पटे से अपनी पीठ पर बाँध लिया और बड़ी बिटिया को गोदी में उठा लिया। दौड़ते दौड़ते बेतहासा थक गई थी, सुनसान रास्ता अंधेरी रात। वो एक पेड़ के नीचे बैठ गई ... वो एक पीपल का पेड़ था जो एक पिशाच का घर था, और वो वहीं पेड़ में छुपा बैठा था। पहले तो पिशाच अपने घर पर आऐ इस मानव खून की सुगंध से अत्यंत प्रसन्न हुआ। मन ही मन सोच रहा था चलो आज शिकार खुद चलकर मेरे घर आया। तभी बच्ची  की रोने की आवाज़ से उसने पीपल के पत्तों में से झाँक कर देखा, ये मानव खून तो एक स्त्री एक माँ का है।
पिशाच उसे एकटकी लगाकर देखने लगा अपनी लाल लाल आँखों से पर ये क्या?? उसकी आँखों में आँसू... उसे अपनी माँ की याद आ गई।

दोनों बच्चियाँ रो रही थी भूख से और पिशाच की आँखों से भी आँसू टपक रहा था। थोड़ी ही देर बाद चार लोग उस पीपल के पेड़ को चारों तरफ से घेर लिए। एक ने संध्या का मुँह बंद किया और दूसरे ने दोनों बच्चियों को उससे अलग किया। संध्या उनके चंगुल से बचने की पूरी कोशिश  कर रही थी।

  पिशाच जो संध्या में अपनी माँ की छवि देख रहा था वो चारों नरपिशाचों को अपने दोनों हाथों से दबोच लेता है और संध्या उन नरपिशाचों के चंगुल से छूटते ही अपनी बिलखती बच्चियों को गोदी में उठा लेती है।

इधर वो पीपल के पेड़ वाला पिशाच उन चारों का खून पी रहा है। चमगादड़ पेड़ के आसपास मंडरा रहे हैं.... उस अंधेरी रात में पत्तों की सरसराहट और दूर से आती जानवरों की आवाज.. दो लाल लाल चमकती आँखे..  मुँह  से टपकता खून .. संध्या उस पिशाच को देख पसीने से लथपथ बच्चियों का रोना जारी, पिशाच अपने दोनों हाथ जोड़ संध्या से कहता है," माँ अब आप सुरक्षित हैं, इस दुनिया में जिंदा इंसान ज्यादा खतरनाक है हम पिशाचों से।"

अचानक संध्या की नींद खुलती है, खुद को पसीने में लथपथ पाती है.. ओह!  यह मात्र सपना था।
संध्या को सपने में तो उस पिशाच ने बचा लिया पर घर छोड़ने के बाद इन नरपिशाचों से कैसे बचेगी संध्या यही सोच कर वो अपने पति संदीप को देख रही थी इस दुनिया में सिर्फ यही हैं जिनके पास मैं सुरक्षित हूँ।

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कविता झा'काव्या कवि'

#लेखनी

## लेखनी वार्षिक कहानी लेखन प्रतियोगिता

२९.०३.२०२२


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1 Comments

Gunjan Kamal

29-Mar-2022 07:01 PM

बहुत खूब

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